Narak Chaturdashi 2021: नरक चतुर्दशी के दिन यम का दीपक जलाने की है परंपरा, जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा

नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) और दिवाली (Diwali) इस साल 4 नवम्‍बर को देशभर में मनाया जाएगा. नरक चतुर्दशी के दिन यम की पूजा की जाती है. मान्‍यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन यम का दीप जलाने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है. यही वजह से है नरक चतुर्दशी के दिन घर के मुख्य द्वार के बांई ओर अनाज की ढेरी रखकर इस पर सरसों के तेल का एक मुखी दीपक जलाया जाता है. इसे जलाते समय यह ध्‍यान रखा जाता है कि दीपक की लौ दक्षिण दिशा की ओर रहे. नरक चतुर्दशी मनाने के पीछे एक प्रचलित पौराणिक (Narak Chaturdashi Story) कथा है

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Narak Chaturdashi 2021: नरक चतुर्दशी के दिन यम का दीपक जलाने की है परंपरा, जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा

नरक चतुर्दशी के दिन यम का दीपक घर के बड़े बुजुर्ग प्रज्जवलित करते हैं.  Image :Pixabay

नरक चतुर्दशी के दिन यम का दीपक घर के बड़े बुजुर्ग प्रज्जवलित करते हैं. Image :Pixabay

Narak Chaturdashi 2021 Story: कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन छोटी दीवाली यानी नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) मनाई जाती है. इस साल 4 अक्टूबर यानी कि गुरुवार को ही नरक चतुर्दशी भी मनाई जाएगी. इस दिन लोग घर की दहलीज पर पर यम का दीपक प्रज्जवलित करते हैं. माना जाता है कि इस दिन यम का दीपक जलाने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता. नरक चतुर्दशी के दिन इस दीपक को घर के बड़े बुजुर्ग प्रज्वलित करते हैं. नरक चतुर्दशी के रूप में इस दिन को मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं (Narak Chaturdashi Story) प्रचलित हैं.

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Narak Chaturdashi 2021 Story : नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) और दिवाली (Diwali) इस साल 4 नवम्‍बर को देशभर में मनाया जाएगा. नरक चतुर्दशी के दिन यम की पूजा की जाती है. मान्‍यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन यम का दीप जलाने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है. यही वजह से है नरक चतुर्दशी के दिन घर के मुख्य द्वार के बांई ओर अनाज की ढेरी रखकर इस पर सरसों के तेल का एक मुखी दीपक जलाया जाता है. इसे जलाते समय यह ध्‍यान रखा जाता है कि दीपक की लौ दक्षिण दिशा की ओर रहे. नरक चतुर्दशी मनाने के पीछे एक प्रचलित पौराणिक (Narak Chaturdashi Story) कथा है.

नरक चतुर्दशी मनाने के पीछे की ये है पौराणिक कथा

एक समय भगवान कृष्ण अपनी आठों पत्नियों के साथ द्वारिका में सुखी जीवन जी रहे थे. उसी समय प्रागज्योतिषपुर नामक राज्य का राजा एक दैत्य नरकासुर था. उसने अपनी दैत्य शक्तियों से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर दिया था और साधुओं और औरतों पर अत्याचार करने लगा था. एक दिन स्वर्गलोक के राजा देव इंद्र कृष्ण के पास पहुंचे और बताया कि नरकासुर ने तीनों लोकों को अपने अधिकार में कर लिया है और वरुण का छत्र, अदिति के कुंडल और देवताओं की मणि छीन ली है. यही नहीं, वह सुंदर कन्याओं का हरण कर उनके साथ अत्‍याचार कर रहा है और उसके अत्याचार की वजह से देवतागण, मनुष्य और ऋषि-मुनि त्राहि-त्राहि कर रहे हैं

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